असम के मंदिर में बलि की रस्म की पुरानी तस्वीर ग़लत सांप्रदायिक एंगल से शेयर की गई

लेखक: वनिता गणेश
जून 21 2024

शेयर आर्टिकल: facebook logo twitter logo linkedin logo
असम के मंदिर में बलि की रस्म की पुरानी तस्वीर ग़लत सांप्रदायिक एंगल से शेयर की गई

तस्वीर इस दावे से शेयर की गई है कि मंदिर के एक पुजारी को गाय का सिर उठाकर ले जाना पड़ा, क्योंकि दो मुस्लिम व्यक्तियों ने उसे मंदिर में फेंक दिया था. (सोर्स: एक्स/स्क्रीनशॉट)

फैक्ट चैक

निर्णय असत्य

वायरल तस्वीर 2017 दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान असम के एक हिंदू मंदिर में बलि की रस्म को दर्शाती है. इसका ईद-उल-अज़हा से कोई संबंध नहीं है.

क्लेम आईडी 04330d01

(ट्रिगर चेतावनी: इस स्टोरीमें ग्राफिक और विचलित करने वाले दृश्यों का वर्णन है. पाठकों को विवेक का इस्तेमालकरने की सलाह दी जाती है.)

दावा क्या है?

सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें एक व्यक्ति को एक गाय का कटा हुआ सिर पकड़े हुए दिखाया गया है. इस तस्वीर के साथ दावा किया जा रहा है कि वह एक पुजारी है और वह एक गाय का सिर दिखा रहा है जिसे मुस्लिम समुदाय के दो लोगों ने मंदिर में फेंक दिया था.

एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक यूज़र ने तस्वीर के साथ कैप्शन दिया, "बकरीद मुबारक", जो ईद अल-अज़हा का संदर्भ देता है.

ईद-अल-अज़हा, जिसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है, एक इस्लामी त्यौहार है जिसे भारत में जून 17, 2024 को मनाया गया था. इस मौक़े पर दुनिया भर में मुसलमान धार्मिक भावनाओं के कारण अलग-अलग तरह के जानवरों की क़ुर्बानी देते हैं. ये परंपरा इस्लाम के उद्भव से पहले से चली आ रही है.

पोस्ट में आगे दावा किया गया है, "गाय के कटे हुए सिर को दो मुस्लिम लोगों ने मंदिर में फेंका था. पुजारी जी को मंदिर की पवित्रता बनाए रखने के लिए ऐसा करना पड़ा और फिर देखिए कि यह इस्लामवादी इसका कैसे मज़ाक उड़ा रहा है... खूनी धर्मनिरपेक्षता." इस पोस्ट को 1,600 से ज़्यादा बार देखा गया है, और ऐसे ही दावों के साथ शेयर किये गए पोस्ट्स के आर्काइव वर्ज़न यहां और यहां देखे जा सकते हैं.

वायरल पोस्ट्स के स्क्रीनशॉट. (सोर्स: एक्स/स्क्रीनशॉट)

दरअसल मध्य प्रदेश के जौरा में चार व्यक्तियों को कथित तौर एक मंदिर में गाय का सिर फेंकने के आरोप में गिरफ़्तार किए जाने के तुरंत बाद यह तस्वीर सामने आई है. इस घटना से इलाके में अशांति फ़ैल गई.

हालांकि, वायरल तस्वीर इस घटना को नहीं दर्शाती है; यह 2017 में असम के बिल्लेश्वर देवालय मंदिर में एक भक्त को बलि की रस्म में भाग लेते हुए दिखाती है.

सच्चाई क्या है?

वायरल तस्वीर को रिवर्स इमेज सर्च करने पर, हमें यह फ़ोटो स्टॉक वेबसाइट गेट्टी इमेजेज़ (आर्काइव यहां) पर अक्तूबर 7, 2017 को पोस्ट हुई मिली. कैप्शन के अनुसार, यह असम के बिल्लेश्वर देवालय मंदिर में एक भक्त को नवमी दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान बलि की रस्म में भाग लेते हुए दिखाती है. डेविड तालुकदार को क्रेडिट देने वाली तस्वीर में विशेष रूप से कहा गया है कि यह एक हिंदू त्योहार के दौरान भैंस की बलि दिखाती है - गाय की नहीं.

गेटी इमेजेज पर मूल तस्वीर का स्क्रीनशॉट. (सोर्स: गेटी इमेजेज़/स्क्रीनशॉट)

असम में बिलेश्वर देवालय मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जो एक हिंदू देवता हैं,और यहां दुर्गा पूजा उत्सव के हिस्से के रूप में भैंस की बलि दी जाती है. टाइम्स ऑफ इंडिया के एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 से, मंदिर में पारंपरिक रूप से दुर्गा पूजा के दौरान 50 भैंसों की बलि दी जाती है, हालांकि उस साल केवल एक ही बलि दी गई थी. मंदिर में नवरात्रि के नौवें दिन महा नवमी पर बकरे, कबूतर और बत्तखों की बलि भी दी जाती है.

इसके अलावा, अक्तूबर 5, 2011 की इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट (ट्रिगर चेतावनी: विचलित करने वाले दृश्य) ने भी बेलसोर के बिलेश्वर देवालय मंदिर में भैंस की बलि को डॉक्यूमेंट किया था.

असम में महा नवमी उत्सव के दौरान कामाख्या और उग्र तारा मंदिरों में भी पशु बलि की यह प्रथा मनाई जाती है.

निर्णय

हमारी अब तक की जांच से साफ़ हो जाता है कि दुर्गा पूजा के दौरान असम के एक मंदिर में सालाना बलि की रस्म को दिखाने वाली 2017 की एक तस्वीर को ग़लत सांप्रदायिक दावे के साथ शेयर किया गया है.

इस फैक्ट चेक को पढ़ें

English , অসমীয়া , हिंदी , తెలుగు

क्या आप फ़ैक्ट-चेक के लिए कोई दावा प्रस्तुत करना चाहेंगे या हमारी संपादकीय टीम से संपर्क करना चाहेंगे?

0
ग्लोबल फैक्ट चेक पूरा हुआ

हमारे जीवन पर असर डालने वाले फैसलों के लिए हम सूचना पर भरोसा करते हैं, लेकिन इंटरनेट के जरिए ग़लत सूचनाएं इतनी तेजी से लोगों तक पहुंचाई जा रही है जैसा पहले कभी नहीं हुआ था.