होम नहीं, सॉलिसिटर जनरल की दलीलों के बीच चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ उठकर नहीं गए

नहीं, सॉलिसिटर जनरल की दलीलों के बीच चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ उठकर नहीं गए

लेखक: मोहम्मद सलमान

मार्च 19 2024

शेयर आर्टिकल: facebook logo twitter logo linkedin logo
नहीं, सॉलिसिटर जनरल की दलीलों के बीच चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ उठकर नहीं गए दावा है कि जब सॉलिसिटर जनरल जजों के सामने अपनी दलीलें रख रहे थे तो चीफ़ जस्टिस बिना कोर्ट स्थगित किए उठकर चले गए. (सोर्स: एक्स/स्क्रीनशॉट)

फैक्ट चैक

निर्णय असत्य

वायरल वीडियो अधूरा है. पूरे वीडियो से पता चलता है कि चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ख़ुद को अपनी कुर्सी पर एडजस्ट किया था, नाकि उठे या बाहर निकले थे.

दावा क्या है?

भारत की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस वीडियो में चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच इलेक्टोरल बॉन्ड मामले की सुनवाई कर रही है और सॉलिसिटर जनरल बोलते हुए नज़र आ रहे हैं. इस वीडियो को शेयर करते हुए दावा किया जा रहा है कि जब सॉलिसिटर जनरल जजों के सामने अपनी दलीलें रख रहे थे तो चीफ़ जस्टिस बिना कोर्ट स्थगित किए “उठकर चले गए.”

सोशल मीडिया यूज़र्स इस वीडियो के ज़रिये चीफ़ जस्टिस पर कोर्ट की अवमानना करने का आरोप लगा रहे हैं और साथ ही भारत के राष्ट्रपति द्वारा सीजेआई चंद्रचूड़ सहित सभी जजों को दंडित करने और उन्हें इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर करने की मांग कर रहे हैं.

एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक यूज़र ने वीडियो पोस्ट करते हुए कैप्शन दिया, "Wow! अधिवक्ता बोलते रहे और चंद्रचूड़ उठ कर निकल गया, बिना कुछ बताए! यह वीडियो बताता है कि न्यायपालिका में पारिवारिक प्रतिभा और उचित डीएनए सीक्वेंस-धारी जजों का घमंड कितना ऊँचा और अभद्र होता है। ये सुप्रीम कोर्ट है। सुप्रीम कोर्ट!" हालांकि, यह पोस्ट डिलीट हो चुका है, लेकिन उसके पहले इसे 96,000 से ज़्यादा व्यूज़ मिल चुके थे. इस पोस्ट का आर्काइव वर्ज़न यहां देखें. ऐसे ही दावे वाले अन्य पोस्ट यहां, यहां और यहां देखे जा सकते हैं. 

वायरल पोस्ट्स के स्क्रीनशॉट. (सोर्स: एक्स/स्क्रीनशॉट)

हालांकि, वीडियो के साथ किया जा रहा दावा ग़लत है. चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ख़ुद को कुर्सी पर एडजस्ट किया था, नाकि उठकर गए थे, जैसा कि दावा किया जा रहा है. 

सच्चाई कैसे पता लगाई? 

हमारी जांच में सामने आया कि वायरल हो रहे वीडियो को सबसे पहले लॉ टुडे ने शेयर किया था, जो कि इंडिया टुडे का लीगल हैंडल है. इस पोस्ट के कैप्शन में चीफ़ जस्टिस और सॉलिसिटर जनरल के बीच हुई बातचीत का ज़िक्र है. लॉ टुडे के पोस्ट में यह वीडियो उस समय कट जाता है, जब चीफ़ जस्टिस अपने साथ बैठे दूसरे जजों से कुछ बात कर रहे होते हैं. सोशल मीडिया यूज़र्स ने इसे इस दावे के साथ शेयर करने लगे कि वह कोर्ट की कार्यवाही की बीच से उठकर चले गए.

दरअसल यह पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर चल रही सुनवाई के दौरान हुआ. इसके बाद, पूरी अदालती कार्यवाही देखने के लिए हम सुप्रीम कोर्ट के यूट्यूब चैनल पर गए जहां हमें 18 मार्च 2024 को अपलोड किया गया एक वीडियो मिला. 

इसमें वायरल वीडियो वाला हिस्सा 23:05 पर शुरू होता है जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र सरकार की ओर से बहस करने के लिए खड़े होते हैं. इसके बाद 27:05 पर हम ठीक वही हिस्सा देख सकते हैं जहां वायरल वीडियो कट होता है. यहां हमने पाते हैं कि चीफ़ जस्टिस उठते नहीं हैं बल्कि अपने बगल में बैठे जजों से बात करते समय कुर्सी पर ख़ुद को और अपने ब्लैक रोब्स को ठीक (एडजस्ट) करते हैं और अदालत की कार्यवाही जारी रखते हैं.

इस बीच, वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी भी अपने एप्लीकेशन को लेकर चीफ़ जस्टिस से समय मांगते हुए दिखाई देते हैं. हम चीफ़ जस्टिस को पूरी कार्यवाही के दौरान बैठे हुए देख सकते हैं और सुनवाई ख़त्म होने के बाद ही उठते हैं. 

दरअसल वायरल वीडियो में देखी गई सुनवाई 18 मार्च, 2024 को हुई थी क्योंकि एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार चुनाव आयोग को इलेक्टोरल  बांड के अल्फा-न्यूमेरिक नंबर जैसी सभी जानकारियां पेश नहीं की थी, अदालत ने एसबीआई को फ़टकार लगाई और निर्देश दिया यह बाकी जानकारियां साझा करे.

निर्णय 

हमारी अब तक की जांच से साफ़ हो जाता है कि चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड इलेक्टोरल बॉन्ड मामले की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल की दलीलों के बीच अदालती कार्यवाही छोड़कर नहीं गए. वह कुर्सी पर ख़ुद को एडजस्ट कर रहे थे, वीडियो के लंबे वर्ज़न में दिखाया गया है जहां वह कार्यवाही जारी रखते हुए दिखाई दे रहे हैं. इसलिए, हम वायरल दावे को ग़लत मानते हैं.

क्या आप फ़ैक्ट-चेक के लिए कोई दावा प्रस्तुत करना चाहेंगे या हमारी संपादकीय टीम से संपर्क करना चाहेंगे?

0 ग्लोबल फैक्ट चेक पूरा हुआ

हमारे जीवन पर असर डालने वाले फैसलों के लिए हम सूचना पर भरोसा करते हैं, लेकिन इंटरनेट के जरिए ग़लत सूचनाएं इतनी तेजी से लोगों तक पहुंचाई जा रही है जैसा पहले कभी नहीं हुआ था.