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नहीं, यह वीडियो अयोध्या में राम भक्तों पर लाठीचार्ज नहीं दिखाता

लेखक: मोहम्मद सलमान

जनवरी 12 2024

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नहीं, यह वीडियो अयोध्या में राम भक्तों पर लाठीचार्ज नहीं दिखाता सोशल मीडिया यूज़र्स दावा कर रहे हैं कि यह वीडियो 30 साल पहले अयोध्या में राम भक्तों और साधुओं पर पुलिस लाठीचार्ज का है. (सोर्स: एक्स/स्क्रीनशॉट)

फैक्ट चैक

निर्णय असत्य

यह वीडियो 2015 में वाराणसी में गणेश प्रतिमा विसर्जन को लेकर धरना दे रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस लाठीचार्ज का है.

दावा क्या है?

अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तैयारियों के बीच सोशल मीडिया पर एक वीडियो खूब शेयर किया जा रहा है. इस वीडियो में पुलिस को लोगों पर लाठीचार्ज करते और भगवाधारी साधु को घसीटते हुए दिखाया गया है. सोशल मीडिया यूज़र्स का दावा है कि ये 30 साल पुराना वीडियो है, जब मुलायम सिंह के इशारे पर पुलिस ने अयोध्या में राम भक्तों और शंकराचार्य की पिटाई की थी. 

एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक यूज़र ने वीडियो पोस्ट करते हुए कैप्शन दिया, "सपा के मुलायम ने अयोध्या में साधुओं के ऊपर लाठी चार्ज किया था तब का दृश्य." पोस्ट का आर्काइव वर्ज़न यहां देखें. अन्य पोस्ट यहां और यहां देखें.

वायरल पोस्ट के स्क्रीनशॉट (सोर्स: एक्स/स्क्रीनशॉट)

हालांकि, यह वीडियो वाराणसी का है, जब साल 2015 में गणेश प्रतिमा के विसर्जन की मांग को लेकर धरना दे रहे प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया था, जिसमें कुछ संतों सहित दो दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए थे. इसका अयोध्या की किसी भी घटना से कोई लेना-देना नहीं है.

हमने सच का पता कैसे लगाया?

जब हमने वीडियो के कीफ़्रेम्स को रिवर्स इमेज सर्च के ज़रिये सच किया तो हमें 2015 की कई मीडिया रिपोर्टें मिलीं जिनमें वायरल वीडियो से मिलते-जुलते दृश्य थे. 

आज तक की 23 सितंबर, 2015 की वीडियो रिपोर्ट में बताया गया है कि वाराणसी में गंगा में मूर्ति विसर्जन की मांग को लेकर धरना दे रहे लोगों पर पुलिस ने जमकर लाठियां चलाईं. दरअसल इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद वाराणसी में गंगा नदी में प्रतिमा के विसर्जन पर पाबंदी है. इसके बावजूद लोग गंगा में विसर्जन की मांग को लेकर अड़े थे. पुलिस ने पहले उन्हें समझाया लेकिन जब बात नहीं बनी तो पुलिस ने बलपूर्वक लोगों को तितर-बितर किया. इस रिपोर्ट में वायरल वीडियो के समान कई दृश्य देखे जा सकते हैं. 

वहीं, दैनिक भास्कर की वीडियो रिपोर्ट में ठीक वही गोलाकार ढाँचे को देखा जा सकता है जहां भगवाधारी साधु समेत लोग जमा थे, और पुलिस बलपूर्वक उन्हें हटाती दिखाई दे रही है. इसके अलावा, पुलिस एक साधु को ले जाती हुई दिखाई दे रही है, जिसकी पहचान स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के रूप में की गई है.

वायरल वीडियो और भास्कर वीडियो के तुलना (सोर्स: एक्स, दैनिक भास्कर/स्क्रीनशॉट)

इसके अलावा, वायरल वीडियो के अन्य दृश्य न्यूज़ 24 और इंडिया टीवी की सितंबर 2015 की वीडियो रिपोर्ट में देखे जा सकते हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की 24 सितंबर, 2015 की रिपोर्ट में बताया गया है कि गंगा में गणेश प्रतिमा के विसर्जन को लेकर वाराणसी में 30 घंटे तक चला गतिरोध और धरना उस समय ख़त्म हो गया, जब पुलिस ने कुछ हिंदू संतों सहित प्रदर्शनकारियों पर बलपूर्वक कार्रवाई की. इसमें लगभग 30 लोग घायल हो गए, जबकि 25 को दंगा और पथराव के अलावा सीआरपीसी की धारा 144 का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया.

इंडियन एक्सप्रेस न्यूज़ रिपोर्ट का स्क्रीनशॉट (सोर्स: इंडियन एक्सप्रेस/स्क्रीनशॉट)

रिपोर्ट में घटना स्थल वाराणसी के दशाश्वमेध घाट के पास गोदौलिया चौराहा बताया गया है. प्रशासन प्रदर्शनकारियों को लक्ष्मी कुंड में मूर्ति विसर्जित करने के लिए मनाने की कोशिश कर रहा था. लेकिन द्वारका शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और महंत बालक दास के नेतृत्व में प्रदर्शनकारी इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए मूर्ति को गंगा में विसर्जित करने पर जोर दे रहे थे.

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, काशी मराठा गणेश उत्सव समिति ने गंगा में मूर्ति के विसर्जन के लिए सोमवार, 21 सितंबर को गणेश मूर्ति के साथ अपना जुलूस शुरू किया था. इसमें विभिन्न संत भी प्रदर्शनकारियों में शामिल हो गए. बुधवार, 23 सितंबर की सुबह क़रीब 2 बजे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों ने एक बार फिर दशाश्वमेध घाट की ओर मार्च करने की कोशिश की, जिसके बाद पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा.

1990 में अयोध्या गोलीकांड

सोशल मीडिया यूज़र्स का ‘30 साल’ वाला दावा संभवतः 1990 के अयोध्या गोलीकांड की ओर इशारा करता है.

दरअसल बाबरी मस्जिद विध्वंस से दो साल पहले, 30 अक्टूबर 1990 को, यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने पुलिस को उन कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया था, जो वीएचपी, आरएसएस और भाजपा के आह्वान पर अयोध्या में एकत्र हुए थे. 

30 अक्टूबर को कारसेवकों के बाबरी मस्जिद की ओर मार्च करने की कोशिश के दौरान पुलिस से बीच झड़प हो गई. सुबह पुलिस ने बाबरी मस्जिद तक जाने वाले करीब 1.5 किमी लंबे रास्ते पर बैरिकेडिंग कर दी थी. अयोध्या अभूतपूर्व सुरक्षा घेरे में थी. कर्फ्यू लगा दिया गया था. फिर भी, साधुओं और कारसेवकों ने ढांचे की ओर मार्च किया. दोपहर तक पुलिस को कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश मिला. फायरिंग से अरा-तफरी और भगदड़ मच गई थी. 

इसके बाद, 2 नवंबर 1990 को पुलिस और कारसेवकों के बीच एक और झड़प हुई थी. इन झड़पों में कई लोगों की मौत हुई थी. 

निर्णय 

हमारी जांच से स्पष्ट है कि वायरल वीडियो 2015 में वाराणसी में गणेश प्रतिमा के विसर्जन को लेकर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प के दौरान लाठीचार्ज को दिखाता है. इसका अयोध्या की किसी भी घटना से कोई लेना-देना नहीं है. इसलिए हम वायरल दावे को ग़लत मानते हैं.

क्या आप फ़ैक्ट-चेक के लिए कोई दावा प्रस्तुत करना चाहेंगे या हमारी संपादकीय टीम से संपर्क करना चाहेंगे?

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